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रामचरित मानस


लंकाकाण्ड

रावण का विभीषण पर शक्ति छोड़ना,
रामजी का शक्ति को अपने ऊपर लेना,
विभीषण-रावण युद्ध
दोहा:
* पुनि दसकंठ क्रद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड।
चली बिभीषन सन्मुख मनहूँ काल कर दंड|॥193॥
भावार्थ:- फिर रावण ने क्रोधित होकर प्रचण्ड शक्ति
छोड़ी। वह विभीषण के सामने ऐसी चली जैसे काल
(यमराज) का दण्ड हो॥93॥
चौपाई :
* आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन
मोरा।॥
तुरत बिभीषन पाछे मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला॥
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भावार्थ:- अत्यंत भयानक शक्ति को आती देख और यह
विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना
है, श्री रामजी ने तुरंत ही विभीषण को पीछे कर लिया
और सामने होकर वह शत्ति स्वयं सह ली॥ 1 ॥
* लागि सक्ति मुरुछा कछ भई। प्रभु कृत खेल सुरन्ह
बिकलई॥

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